बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छतासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता
प्रसवपूर्व पोषण (0-280 दिन) गर्भावस्था के दौरान अतिरिक्त पोषक तत्त्वों की आवश्यकता और जोखिम कारक
(Prenatal Nutrition (0-280 days ): Additional Nutrient's Requirement and Risk Factor During Pregnancy)
प्रसव पूर्व पोषण
गर्भकालीन अवस्था में एक ही साथ दो मानव शरीरों का पोषण होता है। जन्म से पहले 40 सप्ताह तक अर्थात् 9 माह (270-280 दिन) तक शिशु माँ के गर्भ में विकसित होता है। वह अपनी पोषण संबंधी जरूरतों की पूर्ति के लिए पूर्णतः माँ पर आश्रित रहता है। परिणामतः माता को न केवल अपने स्वयं के लिए बल्कि गर्भ में पल रहे शिशु के लिए भी पोषण प्राप्त करना होता है। अर्थात् उसे गर्भस्थ शिशु की पोषण संबंधी आवश्यकता की पूर्ति करनी पड़ती है। अतः गर्भवती माँ का आहार ऐसा होना चाहिए जो उसे स्वयं के लिए तथा गर्भस्थ शिशु के लिए सभी पौष्टिक तत्त्वों से भरपूर हो। गर्भकाल में भोज्य पदार्थों की मात्रा एवं गुणवत्ता दोनों में ही वृद्धि करनी होती है।
सम्पूर्ण गर्भकालीन अवस्था में शिशु के आकार एवं भार में निरन्तर वृद्धि होती है। परन्तु गर्भकाल के अंतिम तीन महीनों में गर्भस्थ शिशु का विकास बड़ी तीव्र गति से होता है। जन्म के समय शिशु का वजन 2.5-3.5 kg तक हो जाताहै। इसलिए गर्भकालीन अवस्था में पोषण संबंधी तत्त्वों की जरूरत का महत्त्व विशेष रूप से बढ़ जाता है।
एक स्वस्थ शिशु जब जन्म लेता है, तब उसके शरीर में निम्न तत्त्व मौजूद रहते हैं-
फास्फोरस -14 gm
प्रोटीन - 500gm
कैल्सियम - 24 gm
लोहो - 0.5 gm
गर्भकालीन अवस्था के 9 माह के समय को मुख्य रूप से तीन अवस्थाओं में बाँटा जा सकता है-
1. डिम्ब अवस्था - गर्भाधान से दो सप्ताह तक,
2. भ्रूणवस्था - डिम्बावस्था ( 15 दिन से 2 माह तक ) तथा
3. गर्भस्थ शिशु की अवस्था- तीसरे माह के प्रारम्भ से शिशु जन्म के समय तक।
गर्भावस्था में पोषक तत्त्वों की आवश्यकता
1. विटामिन– गर्भावस्था में विटामिन्स की आवश्यकता ऊर्जा की आवश्यकतानुसार बढ़ जाती है। बच्चे के जन्म के समय उसके यकृत में विटामिन 'ए' की उपस्थिति होती है अतः गर्भावस्था में विटामिन 'ए' की अतिरिक्त मात्रा की जरूरत होती है। विटामिन 'ए' की कमी से वृद्धि व आँखों पर असर पड़ता है। थायमिन की आवश्यश्का भी कुछ मात्रा में बढ़ जाती है। I.C.M.R. के पोषण विशेषज्ञों के अनुसार 0.2 मिग्रा/ दिन थायमिन अतिरिक्त मात्रा में मिलता रहना चाहिए। यही मात्रा राइबाफ्लेविन की भी आवश्यक होती है। नियासिन 2 मिग्रा प्रतिदिन अतिरिक्त मात्रा में आवश्यक होता है तथा फोलिक एसिड 300 माइक्रोग्राम अतिरिक्त मात्रा में जरूरी होता है।
गर्भावस्था में कैल्सियम तथा फॉस्फोरस की उपयोग क्षमता बढ़ाने के लिए विटामिन 'डी' की भी ज्यादा जरूरत होती है। इसी प्रकार विटामिन 'सी' का भी गर्भावस्था में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है।
2. कैलोरी – गर्भावस्था में प्रोटीन व वसा की मात्रा बढ़ने तथा आधारीय उपापचयन में वृद्धि होने के कारण ऊर्जा की आवश्यकता में भी वृद्धि हो जाती है। भ्रूण की वृद्धि व विकास के लिए भी ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
3. वसा- गर्भकाल में वसा बढ़ाये जाने की जरूरत नहीं होती है क्योंकि आहर में वसा के ज्यादा प्रयोग से गर्भाशय में चर्बी का संग्रह हो जाता है। मोटापा बढ़ता है। मोटापा बढ़ने से कई बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। संतृप्त वसा जैसे—घी, डालडा आदि का उपयोग कम-से-कम किया जाना चाहिए क्योंकि स्वास्थ्य के लिए ये ज्यादा हानिकारक होते हैं। असंतृप्त वसा का उपयोग श्रेयस्कर है।
4. विटामिन बी 12 – गर्भावस्था में पर्निशियस रक्तअल्पता से बचाव के लिए आहार में विटामिन बी 12 का होना नितांत जरूरी है। इसके अभाव में गर्भवती माता के रक्त में लाल रक्त कणिकाओं की मात्रा - सामान्य से काफी कम हो जाती है। सामान्यतः रक्त में लाल रक्त कणिकाओं की संख्या 4.5-5.5 million / mm 3 होता है जो घटकर 1.2-2.5 million/mm 3 हो जाता है। हीमोग्लोबिन का स्तर भी काफी कम 7 - 8% हो जाता है। जब माता रक्तअल्पता से ग्रस्त होती है तो निश्चित ही उसका दुष्प्रभाव शिशु के स्वास्थ्य पर पड़ता है।
भेड़ व बकरी के यकृत में विटामिन बी 12 सर्वाधिक मात्रा में उपस्थित रहता है। 5. प्रोटीन- भ्रूण की वृद्धि तथा माता के शरीर में विभिन्न अंगों के निर्माण हेतु प्रोटीन की आवश्यकता बढ़ जाती है। I.C.M. R. के पोषण विशेषज्ञ समूह ने प्रतिदिन 10-15 ग्राम ज्यादा प्रोटीन की मात्रा प्रस्तावित की है। प्रोटीन की आवश्यकता बाद के 6 महीनों में ज्यादा होती है; क्योंकि 910 ग्राम प्रोटीन स्त्री के शरीर के भ्रूण तथा स्त्री के अंगों में गर्भावस्था के दौरान एकत्रित हो जाती है।
6. जल एवं तरल पदार्थ - गर्भावस्था में पौष्टिक तत्त्वों के साथ-साथ जल और तरल पदार्थों की भी जरूरत होती है। जल एवं तरल पदार्थों से रक्त की तरलता बनी रहती है तथा माता और भ्रूण में उत्पन्न हुए व्यर्थ पदार्थ पसीने व मूत्र के द्वारा उत्सर्जित कर दिए जाते हैं। जल की प्राप्ति के लिए गर्भिणी को दिनभर में 7-8 गिलास जल पीना चाहिए। गर्मी के मौसम में जल की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए। फलों के रस, शर्बत, सब्जियों के सूप, छाछ आदि अन्य पदार्थ को अपने दैनिक आहार में सम्मिलित किया जाना चाहिए।
7. खनिज तत्त्व- गर्भावस्था में कैल्सियम, फॉस्फोरस, लोहे आदि का शोषण ज्यादा होता है। भ्रूण के अस्थि निर्माण के लिए गर्भवती को अतिरिक्त कैल्सियम की जरूरत होती है। WHO तथा FAO समूह (1962) ने कहा कि पूर्ण गर्भावस्था में 30 ग्राम कैल्सियम भ्रूण के शरीर संगृहीत होता है जिसके लिए 500-600 मिग्रा अतिरिक्त कैल्सियम की जरूरत होती है। यह जरूरत गर्भावस्था के अन्तिम तीन माह में विशेष रूप से ज्यादा होती है। I. C. M. R. पोषण विशेषज्ञ समूह ने 500-600 मिग्रा, कैल्सियम की प्रतिदिन अतिरिक्त मात्रा प्रस्तावित की है। यदि कैल्सियम की कमी हो तो भ्रूण माता की अस्थियों में से कैल्सियम का शोषण कर लेता है, किन्तु उससे माता की अस्थियाँ व दाँत कमजोर हो जाते हैं। कैल्सियम की अतिरिक्त मात्रा आहार व औषधि के रूप में ली जानी स्वाभाविक हैं।
8. फोलिक अम्ल - गर्भावस्था में फोलिक अम्ल की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए क्योंकि यह विटामिन मेगालोब्लास्टिक रक्तअल्पता से सुरक्षा करता है।
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